खुमारी - ओशोडोल भी रहे मस्ती में और जागे भी,
नाच भी रहे और जागे भी...
गीत को उठने दो, गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
चुप्पी को छुने दो लफ़्जों के नर्म तारों को,
चुप्पी को छुने दो, चुप्पी को छुने दो लफ़्जों के नर्म तारों को
और लफ़्जों को, और लफ़्जों को चुप्पी की गजल गाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
खोल दो खिड़कियाँ सब, और उठा दो पर्दे,
नयी हवा को बंद घर में आने दो।
छत से झाँक रही कब से है चाँदनी की परी,
दिया बुझा दो, आँगन में उतर आने दो।
फ़िजाँ में छाने लगी है, फ़िजाँ में छाने लगी है बहार की रंगत
फ़िजाँ में छाने लगी है बहार की रंगत...
जुही को खिलने दो, जुही को खिलने दो और चम्पा को महक जाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा संभलने दो, जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
हँसते होठों को, हँसते होठों को जरा चखने दो अश्कों की नमी...
और नम आँखों को, और नम आँखों को जरा फ़िर से मुस्कुराने दो।
हँसते होठों को जरा चखने दो अश्कों की नमी...
और नम आँखों को, और नम आँखों को जरा फ़िर से मुस्कुराने दो।
दिल की बातें अभी झड़ने दो हरसिंगारों सी,
बिना बातों के कभी आँख को भर आने दो
रात को कहने दो कलियों से राज की बातें
गुलों के होठों से उन राजों को खुल जाने दो
जरा जमीं को अब उठने दो, जरा जमीं को अब उठने दो अपने पाँवों पर
जरा आकाश की बाहों को भी झुक जाने दो
जरा जमीं को अब उठने दो अपने पाँवों पर
जरा आकाश की बाहों को, जरा आकाश की बाहों को भी झुक जाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
कभी मंदिर से भी उठने दो, कभी मंदिर से भी उठने दो अजान की आवाज
कभी मंदिर से भी उठने दो अजान की आवाज
कभी मस्जिद की घंटियों को भी बज जाने दो
कभी मस्जिद की घंटियों को भी बज जाने दो
पिंजरे के तोतों को दुहराने दो झूठी बातें,
अपनी मैना को तो, अपनी मैना को तो पर खोल चहचहाने दो।
उनको करने दो मुर्दा रस्मों की बर्बादी का गम
हमें नयी जमीं, नया आसमां बनाने दो।
एक दिन उनको उठा लेंगे सर आँखों पर
आज जरा खुद के तो पाँवों को संभल जाने दो
एक दिन उनको उठा लेंगे इन सर आँखों पर
आज जरा खुद के तो पाँवों को संभल जाने दो
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
जरा सागर को बरसने दो बन कर बादल
और बादल की नदी को सागर में खो जाने दो।
जरा चंदा की नर्म धूप में सेंकने को बदन
जरा सूरज की चाँदने में भींग जाने दो।
उसको खोने दो, उसको खोने दो जो कि पास कभी था ही नहीं
उसको खोने दो जो कि पास कभी था ही नहीं
जिसको खोया ही नहीं, जिसको खोया ही नहीं उसको फ़िर से पाने दो
उसको खोने दो जो कि पास कभी था ही नहीं
जिसको खोया ही नहीं उसको फ़िर से पाने दो
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
अरे हाँ हाँ हुए हम, लोगों के लिए दीवाने
अब लोगों को भी कुछ होश में आने दो
ये है सच कि बह्त कड़वी है मय इस साकी की
ये है सच कि बह्त कड़वी है मय इस साकी की,
रंग लाएगी गर साँसों में उतर जाने दो
छलकेंगे जाम जब छाएगी खुमारी घटा,
जरा मयखानों के पैमानों को तो संभल जाने दो
जरा साकी के तेवर तो बदल जाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
न रहे मयखाना, न रहे मयखाना, न मैख्वार, न साकी, न शराब
नशे को ऐसे भी एक हद से गुजर जाने दो
उसको गाने दो, उसको गाने दो अपना गीत मेरे होठों से
उसको गाने दो अपना गीत मेरे होठों से
मुझे उसके सन्नाटे को गुनगुनाने दो।
जरा संभलने दो मीरा की थिड़कती पायल,
जरा गौतम के सधे पाँव बहक जाने दो।
गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
गीत को उठने दो, गीत को उठने दो और साज को छिड़ जाने दो...
posted by Bhavesh Jhaveri #
4:18 PM